प्रारंभिक जीवन की चुनौतियां

योगेश कथुनिया के माता-पिता ने हमेशा से चाहा था कि उनका बेटा डॉक्टर बने। लेकिन नसीब में कुछ और ही लिखा था। जब योगेश महज 9 साल के थे, तभी उनकी जिंदगी में एक बड़ा मोड़ आया। एक दिन वे पार्क में खेलते-खेलते अचानक गिर गए और फिर खड़ा नहीं हो पाए। उनके माता-पिता तुरन्त उन्हें पास के अस्पताल ले गए जहां डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें गुइलेन-बैरे सिंड्रोम है। यह न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिससे शरीर की मूवमेंट प्रभावित होती है और मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं।

मां का अडिग समर्थन

योगेश के माता-पिता को शुरुआत में यह लगा कि अब उनका बेटा कभी भी फिर से चल नहीं पाएगा। यह समय उनके लिए बेहद कठिन था, लेकिन उनकी मां मीना देवी ने हार नहीं मानी। योगेश की मां उन्हें स्कूटर पर लेकर फिजियोथेरेपी के लिए ले जाती थीं। पूरी मेहनत और समर्पण से उन्होंने योगेश का इलाज वा उनका हौसला बढ़ाया।

फिजियोथेरेपी और प्रशिक्षण

फिजियोथेरेपी के कई सालों बाद, योगेश सहारे के साथ चलना सीख पाए। जब वे किरोड़ीमल कॉलेज में आए, वहां उनकी मुलाकात कुछ पैराएथलीट्स से हुई जिन्होंने उन्हें प्रेरित किया। उनमें से एक एशियन मेडलिस्ट नीरज यादव थे। योगेश ने जेएलएन स्टेडियम में कोच सत्यपाल और द्रोणाचार्य अवार्डी कोच नवल सिंह के साथ भी ट्रेनिंग की।

पहली बार अंतर्राष्ट्रीय मंच पर

नेशनल लेवल पर मेडल जीतने के बाद, योगेश को भारतीय पैरा टीम में मौका मिला। जब वह 2018 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय इवेंट के लिए गए तो उनके दोस्तों ने उनकी ट्रिप को फंड किया और उनका समर्थन किया। इसके छह महीने बाद, 2018 एशियाई पैरा खेलों में उन्होंने चौथा स्थान प्राप्त किया। फिर दुबई में वर्ल्ड पैरा चैंपियनशिप में मिसाल कायम की करते हुए कांस्य पदक जीता।

पैरालंपिक की सफलता

टोक्यो पैरालंपिक में, योगेश ने 44.38 मीटर के थ्रो के साथ रजत पदक जीता, जबकि रियो ओलंपिक चैंपियन ब्राजील के क्लॉडनी बतिस्ता डॉस सैंटोस ने 45.59 मीटर का थ्रो किया। इसके बाद, योगेश ने पेरिस पैरालंपिक में 42.22 मीटर का थ्रो करके फिर से रजत पदक अपने नाम किया।

नई चुनौतियां और विजय

2022 में, उन्हें सर्वाइकल रेडिकुलोपैथी का सामना करना पड़ा, जो रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करने वाली एक नर्व कंडिशन है। पुन: स्वस्थ होने में उन्हें छह महीने लगे, लेकिन उनके कोचों ने उनका साथ नहीं छोड़ा। खासकर कोच नवल सिंह ने उनके साथ व्हीलचेयर पर संतुलन बनाने और थ्रोइंग तकनीक में सुधार करने में मदद की।

महान प्रेरणा

योगेश ने पिछले चार सालों में विभिन्न पैरालंपिक खेलों में और नए विश्व रिकॉर्ड बनाकर अपनी मेहनत और समर्पण को साबित किया है। उन्होंने ओपन नेशनल पैरा चैंपियनशिप में 48.34 मीटर का नया विश्व रिकॉर्ड भी बनाया और हांग्जू एशियाई पैरा खेलों में 42.13 मीटर के थ्रो के साथ रजत पदक जीता।

समाप्ति और भविष्य की योजनाएं

योगेश की मां मीना देवी कहती हैं, ”योगेश का संघर्ष और मेहनत आज युवाओं के लिए एक मिसाल है। जब भी वह उदास महसूस करते हैं तो संघर्ष के शुरुआती दिनों को याद करते हैं, जिससे उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।” आज योगेश अपने अनुभवों को साझा करने के लिए अकादमी भी चला रहे हैं और अन्य पैरा-एथलीट्स को प्रशिक्षित कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि युवा पैरा एथलीट उनके संघर्ष से सीखें और जीवन में किसी भी कठिनाई का साहस से सामना करें।

By IPL Agent

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