हिंदी भाषा में लोकप्रिय खेलों में से एक, कुश्ती ने भारत को कई प्रतिष्ठित पदक देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस खेल की दुनिया में जब हम महान खिलाड़ियों की बात करते हैं, तो विनेश फोगाट का नाम जरूर आता है। भारतीय महिला पहलवान विनेश फोगाट की जीवन यात्रा कठिनाईयों और चुनौतियों से भरी रही है। उन्होंने अपने संघर्ष और दृढ़ निश्चय से भारतीय कुश्ती को एक नया आयाम दिया है।
परिवार और प्रारंभिक जीवन
विनेश फोगाट का जन्म हरियाणा के बलाली गांव में हुआ था। फोगाट परिवार कुश्ती के लिए जाना जाता है, और विनेश का जीवन भी इससे अलग नहीं था। नौ साल की उम्र में अपने पिता को खोने के बाद, उन्होंने अपने चाचा महावीर सिंह फोगाट द्वारा प्रशिक्षित होने की ठानी। यही वह समय था जब उन्हें पहली बार कुश्ती के मैदान में उतरने का मौका मिला।
कुश्ती में पहला कदम
कुश्ती में अपने शुरुआती दिनों में ही विनेश को कई सामाजिक बाधाओं का सामना करना पड़ा। गांव के लोग कुश्ती को लड़कों का खेल मानते थे और महिलाओं के लिए इसे अनुचित समझते थे। परंतु इन बाधाओं ने विनेश के हौसले को कम नहीं किया, बल्कि उन्हें और मजबूत बनाया। उन्होंने अपने चाचा महावीर सिंह फोगाट की ट्रेनिंग के जरिए खुद को तैयार किया और कई नेशनल और इंटरनेशनल टूर्नामेंट में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
कठिनाइयों से भरी राह
विनेश का कुश्ती करियर हमेशा आसान नहीं रहा। 2016 के रियो ओलंपिक में घुटने की एसीएल चोट के कारण उनका करियर लगभग समाप्त मान लिया गया था। यह चोट इतनी गहरी थी कि उनकी उम्मीदें भी टूटती नजर आ रही थीं। परंतु विनेश ने हार मानने के बजाय, पूरी कोशिश करके फिर से मैदान में उतरने का संकल्प लिया। उन्होंने घुटने की सर्जरी करवाई और फिर से कड़ी मेहनत शुरू की।
व्यवस्था से लड़ाई
विनेश की मुखालफत सिर्फ मैदान तक सीमित नहीं थी। भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर उन्होंने प्रदर्शन की अगुआई की। इस मामले ने काफी तूल पकड़ा और पुलिस से होते हुए अदालत तक पहुंचा। आलोचकों ने उनका खूब विरोध किया और यहां तक कहा कि उनका करियर समाप्त हो गया है। परंतु, विनेश ने हर बार दिखाया कि वह कठिन परिस्थितियों में भी हार मानने वालों में से नहीं हैं।
पेरिस ओलंपिक की तैयारी
विनेश फोगाट का अगला बड़ा सपना पेरिस ओलंपिक में पदक जीतने का था। इस रास्ते में भी वे कई चुनौतियों से गुजरीं। उन्हें 53 किलो की बजाय 50 किलो में उतरना पड़ा और इस बीच कई ट्रायल मुकाबले हुए। घुटने की सर्जरी के बाद वापसी करना भी एक बड़ा चैलेंज था लेकिन विनेश ने इसे भी पार कर लिया।
लेकिन, यह सफर आसान नहीं था। विनेश को विवाद, आलोचना और बाधाओं का सामना करना पड़ा। पेरिस ओलंपिक क्वालिफिकेशन के दौरान तो यह भी अफवाहें उड़ीं कि उन्होंने डोप टेस्ट से बचने की कोशिश की। इन सबके बावजूद, उन्होंने अपनी मेहनत और संकल्प से सभी को गलत साबित कर दिया।
अंतिम संघर्ष और जीत
पेरिस ओलंपिक में विनेश को आसान ड्रॉ नहीं मिला। उनका पहले दौर में ही मुकाबला मौजूदा चैंपियन यूई सुसाकी से था। हालांकि, उन्होंने सुसाकी को उनके करियर की पहली हार के लिए मजबूर किया। इसके बाद यूक्रेन की लिवाच उकसाना को हराया और सेमीफाइनल में क्यूबा की युसनेलिस गुजमैन लोपेज को 5-0 से शिकस्त दी।
एक नई प्रेरणा
विनेश फोगाट की यह कहानी सिर्फ एक कुश्ती खिलाड़ी की नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, साहस और संकल्प की कहानी है। उन्होंने दिखाया कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी हार मानने के बजाय, उन्हें अपने निर्णायक साधनों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
विनेश फोगाट की सफलता और उनके द्वारा जीते गए संघर्ष हमें जीवन में अडिग रहने और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास करने की प्रेरणा देते हैं। वे आज भारतीय युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन चुकी हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल पेश करती रहेंगी।