परिचय
23 वर्षीय रुबीना फ्रांसिस का सफर किसी प्रेरणादायक कहानी से कम नहीं है। जबलपुर की इस युवती ने कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ रिकेट्स जैसी बीमारियों को मात देकर पैरालंपिक खेलों में 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में कांस्य पदक जीता है। यह उपलब्धि भारतीय पैराशूटिंग के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
शुरुआत में संघर्ष
रुबीना का बचपन रिकेट्स की बीमारी से प्रभावित था, जिसमें शरीर की हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं, और चलने-फिरने में कठिनाई होती है। रुबीना के पिता, सैमन फ्रांसिस, जो एक मैकेनिक हैं, ने अपनी बेटी के संघर्ष के दिनों को याद करते हुए बताया कि कैसे वह टीवी पर खेल सितारों को देखकर प्रभावित होती थी। गगन नारंग की ओलंपिक ब्रॉन्ज जीतने की घटना ने रुबीना में शूटिंग खेल के प्रति रुचि जगाई।
शूटिंग की ओर कदम
रुबीना का शूटिंग करियर 2015 में शुरू हुआ जब उन्होंने मध्य प्रदेश के सेंट एलॉयसियस स्कूल में गन फॉर ग्लोरी सेंटर से प्रशिक्षण लिया। उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए कोच निशांत ने उन्हें पिस्टल शूटिंग के लिए प्रेरित किया। मात्र दो साल में ही रुबीना ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया और मध्य प्रदेश शूटिंग अकादमी के लिए चयनित हो गईं।
स्वास्थ्य की परेशानियों को मात
रुबीना की सफलता में सबसे बड़ी बाधा उनके स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं थीं। रिकेट्स के कारण उनके घुटने मुड़े रहते थे और इस वजह से उनके पिस्तौल वाले हाथ में कंपन होता था। कोच जय वर्धन सिंह ने रुबीना के लिए विशेष जूते तैयार कराए जिससे उनके शरीर का मूवमेंट नियंत्रित हो सके। साथ ही, उनकी व्रिस्ट और तकनीक के अनुसार पिस्टल की ग्रिप को एडजस्ट किया गया।
राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय उपलब्धियाँ
रुबीना ने जल्द ही घरेलू शूटिंग प्रतियोगिताओं में अपने बेहतरीन प्रदर्शन से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। उन्होंने फ्रांस पैरा विश्व कप में फाइनल में पहुंचकर टोक्यो पैरालिंपिक के लिए कोटा हासिल किया। इसके अलावा, पेरु पैरा विश्व कप और हांग्जो पैरा एशियाई खेलों में भी पदक जीतकर अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई।
पेरिस पैरालिंपिक की सफलता
पेरिस पैरालिंपिक खेलों में रुबीना ने 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में कांस्य पदक जीतने के बाद एक बार फिर अपनी संभवताओं को साबित किया। रुबीना ने संतुलन बनाए रखने के लिए कस्टमाइज्ड जूतों का उपयोग किया और फाइनल में 211.1 अंकों का स्कोर कर भारतीय पैरा शूटिंग में एक नई इबारत लिखी।
हाल का प्रदर्शन और भविष्य
इस सफलता के बाद रुबीना को भारतीय पैराशूटिंग टीम के प्रमुख का दर्जा मिला और उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। वर्तमान में, वे मुंबई में आयकर अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं और अपनी प्रशिक्षण में कोई कमी नहीं आने देतीं। उन्होंने अपनी खुद की पिस्टल भी खरीदी है और लगातार अपनी तकनीक को सुधार रही हैं।
निष्कर्ष
रुबीना फ्रांसिस की कहानी प्रेरणादायक है और यह साबित करती है कि किसी भी शारीरिक या मानसिक बाधा को पार करने के लिए दृढ़ संकल्प, मेहनत, और अनुशासन की आवश्यकता होती है। उन्होंने न केवल अपने परिवार का नाम रोशन किया है बल्कि पूरे देश को गौरवान्वित किया है। रुबीना की यह सफलता आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बनी रहेगी।