पेरिस ओलंपिक में भारत की मेडल की एक और बड़ी उम्मीद टूट गई। भारत की ओलंपिक मेडलिस्ट मीराबाई चानू लगातार दूसरे ओलंपिक में मेडल जीतने का मौका चूक गईं। चानू ने टोक्यो ओलंपिक में 49 किलोग्राम वर्ग में सिल्वर मेडल जीता था, लेकिन वह पेरिस में चौथे स्थान पर रहीं।
मीराबाई चानू का प्रदर्शन
मीराबाई चानू ने स्नैच में 88 किलोग्राम और क्लीन एंड जर्क में 111 किलोग्राम वजन उठाया। वह कुल मिलाकर 199 किलोग्राम भार उठा पाईं। इसके साथ ही वह इस वेट के साथ चौथे स्थान पर रहीं। तीसरे स्थान पर रहने वाली थाईलैंड की वेटलिफ्टर सुरुदचंदा ने स्नैच में 88 और क्लीन एंड जर्क में 112 किलोग्राम का भार उठाया। वह 200 किलोग्राम के साथ ब्रॉन्ज मेडल जीतने में कामयाब रही। मौजूदा ओलंपिक चैंपियन होउ झिहुई ने क्लीन एवं जर्क में ओलंपिक रिकॉर्ड के साथ पहला स्थान हासिल किया। उन्होंने कुल 206 (स्नैच 89, क्लीन एवं जर्क 117) किग्रा वजन उठाया।
अन्य एथलीट्स का प्रदर्शन
मीराबाई चानू अकेली नहीं हैं जिन्होंने मेडल से अलग रहकर चौथे स्थान पर फिनिश किया। निशानेबाज मनु भाकर, अर्जुन बबूता, अनंत जीत-महेश्वरी, बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन और तीरंदाजी जोड़ी धीरज बोम्मदेवरा-अंकिता भकत भी इसी स्थिति का सामना कर चुके हैं। इन सभी एथलीटों ने भी अपने-अपने इवेंट्स में चौथा स्थान प्राप्त किया, लेकिन मेडल से चूक गए।
मीराबाई चानू का बयान
हार के बाद मीराबाई चानू ने मिक्स्ड जोन में आकर पत्रकारों से बात कीं। उन्होंने यहां बताया कि वह पीरियड्स पर थीं। ओलंपिक मेडलिस्ट ने कहा, “मेरे पीरियड्स (मेंसुरेशन) का आज तीसरा दिन था। मुझे काफी कमजोरी थी। इससे मेरे खेल पर असर पड़ा। मैंने अपना बेस्ट दिया। आज मेरा दिन नहीं था।”
पीरियड्स का एथलीट्स पर प्रभाव
महिला एथलीट्स अक्सर पीरियड्स के दौरान परीक्षाओं का सामना करती हैं। इसके कारण उन्हें कई बार शारीरिक समस्याएं और कमजोरी होती है, जो उनके प्रदर्शन पर प्रभाव डालती है। यह एक सामान्य समस्या है जिसे जनसमुदाय में बहुत सी बार अनदेखा कर दिया जाता है। मीराबाई चानू के बयान से यह स्पष्ट होता है कि महिला एथलीट्स को भी अपने शारीरिक अवस्था के कारण संघर्ष करना पड़ता है।
मीराबाई चानू का अब तक का संघर्ष
मीराबाई चानू का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है। उन्होंने अपनी मेहनत और दृढ़ता के बल पर देश को कई महत्वपूर्ण मेडल दिलाए हैं। उनका यह संकल्प और हिम्मत ही उन्हें देश की एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाता है।
आगे की राह
मीराबाई चानू ने हार के बाद भी अपने फोलोअर्स को यह संदेश दिया कि हार और जीत किसी भी एथलीट के जीवन का हिस्सा हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वह अपनी तैयारियों को और भी मजबूत करेंगी और भविष्य में बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करेंगी।
वह अपने कठिन परिस्थितियों के बावजूद जिस तरह से मैदान पर डटी रहीं, वह काबिले तारीफ है। उनकी इस ताकत और संघर्षशीलता से युवा एथलीट्स को प्रेरणा मिलेगी कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।
पेरिस ओलंपिक में मीराबाई चानू का मेडल ना जीत पाना निश्चित रूप से एक निराशाजनक घटना है लेकिन उनके संघर्ष की कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी भी चुनौती को कैसे डट कर सामना करना चाहिए।