पेरिस ओलंपिक में भारत का सफर लगभग खत्म हो चुका है। भारत के पास अब मेडल जीतने की इकलौती उम्मीद रीतिका हुड्डा हैं। भारतीय रेसलर रीतिका हुड्डा को क्वार्टर फाइनल मैच में हार मिली जिसके बाद भारत की इन खेलों में गोल्ड मेडल जीतने की उम्मीद खत्म हो गई। पेरिस ओलंपिक से भारतीय दल बिना गोल्ड मेडल लौटेगा।
व्यक्तिगत गोल्ड मेडल में कमी
भारत के लिए अब तक केवल दो ही खिलाड़ियों ने व्यक्तिगत गोल्ड मेडल जीते हैं। राइफल शूटर अभिनव बिंद्रा ने बीजिंग ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता था। वहीं, टोक्यो ओलंपिक में नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल जीता। इस क्लब में कोई नई एंट्री नहीं हुई है। फैंस को इस बार पेरिस ओलंपिक से काफी उम्मीदें थीं लेकिन परिणाम उनकी उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहे।
भारतीय खिलाड़ियों की उम्मीदें और असफलता
पेरिस ओलंपिक में कई खिलाड़ियों को गोल्ड का दावेदार माना जा रहा था। हालांकि कोई भी यह काम पूरा नहीं कर सका। गोल्ड के सबसे बड़े दावेदार जैवलिन थ्रो एथलीट नीरज चोपड़ा थे। वह इस बार सिल्वर मेडल ही जीत पाए। भारत की विनेश फोगाट गोल्ड मेडल के लिए काफी करीब पहुंच गई थीं। हालांकि वह फाइनल मैच खेल ही नहीं पाईं। उन्हें 100 ग्राम ज्यादा वजन होने के कारण डिस्क्वालिफाई कर दिया गया था।
हॉकी टीम का संघर्ष
भारतीय हॉकी टीम जिस फॉर्म के साथ सेमीफाइनल में पहुंची थी उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि 44 साल बाद देश को गोल्ड मेडल मिल जाएगा। टीम ने ग्रुप राउंड में ऑस्ट्रेलिया को मात दी थी। वहीं क्वार्टर फाइनल में उन्होंने 10 खिलाड़ियों के साथ खेलते हुए ग्रेट ब्रिटेन को मात दी। यही कारण था कि उन्हें भी गोल्ड का दावेदार माना जा रहा था। हालांकि टीम सेमीफाइनल मुकाबला हार गई और उसे भी गोल्ड नहीं मिल सका।
अन्य खेलों में प्रदर्शन
भारतीय खिलाडियों ने विभिन्न खेलों में भी हिस्सा लिया लेकिन कहीं भी उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर पाए। पी.वी. सिंधु को बैडमिंटन में गोल्ड का प्रबल दावेदार माना जा रहा था लेकिन वह क्वार्टर फाइनल में हार गईं। टेबल टेनिस में मनिका बत्रा ने उम्मीदों को जिंदा रखा लेकिन वह भी टॉप लेवल पर नहीं टिक पाईं। इसी तरह, बॉक्सिंग में वेटलिफ्टर वीरेंद्र सिंह भी मेडल से चूक गए।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा का असर
इस बार के ओलंपिक में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा बेहद कठिन रही है। कई देशों ने अपने सर्वोत्तम प्रदर्शनकत्र्ताओं को मैदान में उतारा और परिणामस्वरूप मेडल जीते। भारत के खिलाड़ी को भी यह समझने की जरूरत है कि उन्हें अपनी तैयारी में और सुधार करना होगा। ओलंपिक जैसे मंच पर सिर्फ प्रबल इच्छा और व्यक्तिगत क्षमता काफी नहीं होती, बल्कि संगठित प्रयास और सही रणनीति भी आवश्यक है।
रेस्लिंग में रीतिका हुड्डा की आखिरी उम्मीद
रीतिका हुड्डा को क्वार्टर फाइनल मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा, जिससे इंडियन दल की गोल्ड मेडल की आखिरी उम्मीद भी टूट गई। वह अपनी पूरी क्षमता के साथ मैट पर उतरी थी, लेकिन अंतराष्ट्रीय रेस्लर के सामने उनकी चुनौती कमजोर साबित हुई।
आगे की राह
भारतीय दल के वापसी के बाद खेल मंत्रालय और संबंधित खेल संघों के सामने कई सवाल खड़े होंगे। क्या उनकी तैयारी में कोई कमी थी? क्या उनके प्रदर्शन में कोई रणनीतिक चूक हुई? इन सब सवालों के जवाब ढूंढ़ने होंगे और आगामी ओलंपिक में बेहतर प्रदर्शन के लिए सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी गलतियों की पुनरावृत्ति न हो।
हालांकि पेरिस ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा, परंतु भारतीय खिलाड़ियों की मेहनत और संघर्ष को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने देश का गौरव बनाए रखने के लिए अपनी पूरी कोशिश की। अब हमें उनकी मेहनत को सराहना चाहिए और अगले ओलंपिक के लिए उन्हें प्रेरित करना चाहिए।