पेरिस में हार और फिर केस हारना
पेरिस में स्पर्धा से डिस्क्वालिफाई होने के बाद ये स्पष्ट हो गया था कि विनेश फोगाट के करियर पर धब्बा लग चुका था। लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाए न्याय के लिए लड़ाई जारी रखी। पेरिस में उनकी डिस्क्वालिफिकेशन ने एक महत्वपूर्ण मोड़ ले लिया जब वह कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स (CAS) में अपना केस हार गईं।
यह हार उनकी स्थिति को और भी मुश्किल बना दी। पर उन्होने हार नही मानी और दिल्ली हाई कोर्ट की शरण ली। यहाँ उनका प्रयास सफल साबित हुआ और कोर्ट की जीत ने उनके लिए नई दिशा खोली।
दिल्ली हाई कोर्ट की जीत
विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया और साक्षी मलिक ने दिल्ली हाई कोर्ट में रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (WFI) के खिलाफ याचिका दायर की थी। इस याचिका का उद्देश्य था कि फेडरेशन पर से बैन हटाने के आदेश को रोका जाए और सुप्रीम कोर्ट के किसी रिटायर जज को मैनेजमेंट का कार्य सौंपा जाए। इस याचिका पर अंतिम सुनवाई में, न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने फैसला सुनाया कि तदर्थ समिति का विघटन अनुचित था और इसे बहाल कर दिया।
समिति का पुनर्गठन और उसकी महत्ता
जस्टिस सचिन दत्ता ने यह भी कहा कि आईओए (इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन) को यह अनुमति दी जाती है कि वे तदर्थ समिति का पुनर्गठन कर सकते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह एक बहु-सदस्यीय निकाय हो जिसमें प्रख्यात खिलाड़ी और विशेषज्ञ शामिल हों। इसका उद्देश्य था कि अंतरराष्ट्रीय महासंघों से निपटने में परिपक्वता लाई जा सके और किसी भी चिंता को दूर किया जा सके।
युवा मामले और खेल मंत्रालय का कदम
दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि युवा मामले और खेल मंत्रालय ने 12 दिसंबर 2023 को जो आदेश दिया था उसे कभी भी वापस ले सकता है। यह आदेश आईओए से तदर्थ समिति गठित करने की सिफारिश करता था।
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि तदर्थ समिति तब तक कार्य करना जारी रखेगी, जब तक कि मंत्रालय का आदेश लागू है। यदि परिस्थितियाँ बदलती हैं तो मंत्रालय उस आदेश को समीक्षा के लिए वापस ले सकता है।
पिछली घटनाओं का पुनःस्मरण
विनेश, बजरंग और साक्षी मलिक ने बीते साल रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के तत्कालीन अध्यक्ष बृजभूषण सिंह के खिलाफ धरना दिया था। इन विरोध प्रदर्शन के बाद फेडरेशन में बड़ा बदलाव आया। दिसंबर 2023 में हुए चुनावों में संजय सिंह फेडरेशन के अध्यक्ष चुने गए थे। परंतु चुनाव के तीन ही दिन बाद खेल मंत्रालय ने इस समिति पर बैन लगा दिया था।
विनेश फोगाट और अन्य प्रमुख पहलवानों के नेतृत्व में यह मांग की गई कि फेडरेशन पर से बैन हटाने का फैसला नहीं लिया जाए और किसी निष्पक्ष प्राधिकारी को मैनेजमेंट का कार्य सौंपा जाए। इस याचिका ने अदालत को यह विचार करने पर मजबूर कर दिया की तदर्थ समिति का पुनर्गठन आवश्यक है।
विनेश फोगाट की जीत का महत्त्व
दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला किसी भी खिलाड़ी या खेल संघ के लिए एक बड़ा संकेत है कि उनसे जुड़े कानूनी मसलों का महत्व अधिक है। कोर्ट ने साबित किया कि भारतीय न्याय व्यवस्था में किसी भी प्रकार की गलत संगठनों पर नकेल कसने की शक्ति है।
विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया और साक्षी मलिक के नेतृत्व में आपसी संघर्ष और न्याय के प्रयास से यह स्पष्ट होता है कि खेल और खिलाड़ियों के लिए न्याय मिलना अनिवार्य है। यह निर्णय केवल विनेश फ़ोगाट की जीत नहीं है, बल्कि एक न्यायसंगत और निष्पक्ष खेल संरचना की दिशा में एक बड़ा कदम है।
आगे की राह
दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद तदर्थ समिति का पुनर्गठन और आईओए के द्वारा सही प्रख्यात खिलाड़ीयों और विशेषज्ञों का चयन खेल संघों में सुधार के लिए आवश्यक होगा। अब सभी की निगाहें इस बात पर होंगी कि कैसे आईओए और खेल मंत्रालय इस फैसले को लागू करते हैं और खिलाड़ियों के हितों की रक्षा करते हैं।