भारत के खिलाड़ियों ने पेरिस ओलंपिक खेलों के लिए कमर कस ली है। इस साल, 100 से ज्यादा भारतीय एथलीट देश के लिए मेडल की दावेदारी पेश करेंगे। भारत साल 1900 से इन खेलों में हिस्सा ले रहा है और अब तक 35 मेडल जीत चुका है। 124 साल के ओलंपिक इतिहास में भारत ने कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक पल देखे हैं। आईये जानते हैं ऐसे ही कुछ खास पलों के बारे में।
भारत का ओलंपिक सफर
भारत ने पहली बार 1900 में ओलंपिक खेलों में भाग लिया था। इस अवसर पर भारत की ओर से ब्रिटेन के नॉर्मन पिटकार्ड ने हिस्सा लिया। वह भारत के पहले ओलंपियन थे और उन्होंने एथलेटिक्स के 200 मीटर और 200 मीटर हर्डल में हिस्सा लिया था। आश्चर्यजनक रूप से, उन्होंने भारत के लिए पहला मेडल भी जीता था।
पहली महिला एथलीट निलिमा घोष
निलिमा घोष ने 1952 में हेलसिंकी में हुए ओलंपिक खेलों में भाग लेकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। मात्र 17 साल की उम्र में, उन्होंने 100 मीटर हर्डल में हिस्सा लिया था, हालांकि वह आखिरी स्थान पर रही थीं। इसके बाद उन्होंने 80 मीटर हर्डल में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था। निलिमा घोष भारत की ओर से ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली पहली महिला खिलाड़ी थीं।
भारत का पहला गोल्ड मेडल
भारत ने अपना पहला गोल्ड मेडल 1928 में एमस्टाडैम में हुए ओलंपिक खेलों में जीता था। यह गोल्ड मेडल भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने जीता था। यह टीम टूर्नामेंट में कोई मैच नहीं हारी थी और न ही उनके खिलाफ एक भी गोल हुआ था। फाइनल में भारतीय टीम ने नीदरलैंड्स को 3-0 से हराकर जीत दर्ज की थी।
पहला व्यक्तिगत गोल्ड मेडल
भारत के लिए पहला व्यक्तिगत गोल्ड मेडल अभिनव बिंद्रा ने 2008 में बीजिंग में हुए खेलों में 10 मीटर एयर राइफल में जीता था। यह मेडल असाधारण था क्योंकि अभिनव ने ओलंपिक के इतिहास में भारत के लिए पहला व्यक्तिगत गोल्ड मेडल जीत कर नए मानदंड स्थापित किए।
प्रथम महिला मेडलिस्ट
भारत के लिए ओलंपिक मेडल जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी कर्णम मल्लेश्वरी थीं। उन्होंने 2000 में सिडनी में हुए ओलंपिक खेलों में 69 किलोग्राम वर्ग में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। उन्होंने स्नैच में 110 किलोग्राम और क्लीन एंड जर्क में 130 किलोग्राम का वजन उठाकर इतिहास रचा था।
पहले दो ओलंपिक मेडल जीतने वाले खिलाड़ी
सुशील कुमार भारत के पहले ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने दो ओलंपिक मेडल जीते हैं। उन्होंने 2008 में 66 किलोग्राम वर्ग में ब्रॉन्ज मेडल जीता था और अगले ओलंपिक (2012 लंदन) में अपने इस ब्रॉन्ज को सिल्वर में बदल दिया। सुशील कुमार ने अपनी मेहनत और दृढ़ संकल्प से युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बने।
पहला ध्वजवाहक
भारत की आजादी के बाद पहले ध्वजवाहक फुटबॉल कप्तान तालीमेरेन आओ थे। नागालैंड के इस खिलाड़ी का योगदान न सिर्फ खेल में बल्कि समाज सेवा में भी महत्वपूर्ण रहा। डॉक्टर तालीमेरेन आओ ने फुटबॉल और चिकित्सा क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई।
आशाओं का सवेरा: पेरिस 2024
अब जब पेरिस ओलंपिक 2024 के लिए भारतीय खिलाड़ियों की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं, देश की उम्मीदें और उत्साह चरम पर हैं। भारतीय खिलाड़ी विभिन्न खेलों में अपनी दमखम और प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे। बेशक, यह एक नया इतिहास रचने का अवसर होगा और हर भारतीय की नजर उसी पर टिकी है।
निष्कर्ष
भारत का ओलंपिक सफर कई उतार-चढ़ाव और गौरवपूर्ण क्षणों से भरा रहा है। पेरिस ओलंपिक 2024 में भारतीय खिलाड़ियों से और भी ज्यादा ऐतिहासिक पलों की उम्मीद है। देखना यह होगा कि हमारी टीमें इस बार किस-किस क्षेत्र में अपने दमखम का प्रदर्शन करती हैं और देश को गर्व करने के लिए कितने नए अवसर प्रदान करती हैं। इस सफर में हर भारतीय खिलाड़ियों के साथ हर पल खड़ा है और उन्हें जीत की शुभकामनाएं देता है।