प्रारंभिक जीवन और हादसा
सोनीपत के एक छोटे से गांव में जन्मे अभिषेक ने जब से होश संभाला, हॉकी उनकी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा रहा। नौ साल की उम्र में अभिषेक के साथ एक बड़ा हादसा हुआ, जो उनके जीवन को पूरी तरह बदल सकता था। एक दिन खेलते-खेलते अभिषेक पेड़ पर चढ़ गए और अचानक से गिर गए। जमीन पर गिरने से पहले, वे एक दीवार से टकराए जिसमें कांच के टुकड़े लगे हुए थे। इस हादसे ने अभिषेक को गंभीर रूप से घायल कर दिया। अस्पताल में जब अभिषेक को होश आया, उनकी पहली बात थी, “मुझे हॉकी खेलने से मत रोकना।” इस एक वाक्य ने स्पष्ट कर दिया कि अभिषेक के जीवन का लक्ष्य क्या है।
अभिषेक का संघर्ष और दृढ़ संकल्प
अभिषेक ने सीजेडआर सीनियर सेकेंडरी स्कूल, सोनीपत में अपनी शुरुआती शिक्षा प्राप्त की। यहीं से उन्होंने हॉकी की मूल बातें सीखी और धीरे-धीरे अपने खेल में सुधार किया। उनके कोच, जिन्हें अभिषेक मास्टरजीत कहकर बुलाते थे, ने बताया कि अभिषेक तब तक संतुष्ट नहीं होते जब तक वो टीम की उम्मीदों को पूरा नहीं कर लेते। मास्टरजीत ने कहा, “अभिषेक खुश नहीं होता जब तक वह टीम के लिए अपेक्षित प्रदर्शन न कर ले।”
पेरिस ओलंपिक और निराशा
पेरिस ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा होते हुए अभिषेक ने अपने टीम के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि शुरुआती मैचों में उनका प्रदर्शन उम्मीद के अनुसार नहीं था। मास्टरजी ने बताया, “मैंने टीवी पर देखा कि अभिषेक बहुत निराश था। मैंने उसे मैसेज करके पूछा कि क्या हुआ है। उसने उत्तर दिया कि वह गोल नहीं कर पा रहा है और इस वजह से निराश है।” इस बातचीत से यह स्पष्ट होता है कि अभिषेक अपनी सफलता को टीम के प्रदर्शन के साथ जोड़ते हैं।
खेल में बदलाव और नई रणनीति
अभिषेक की शैली शुरुआत में अटैकिंग नहीं थी, लेकिन समय के साथ उन्होंने अपने खेल में परिवर्तन किया। मास्टरजी ने कहा, “आज के समय में हॉकी का मतलब है टच, रिबाउंड और सेट पीस से गोल करना। अभिषेक वैसा नहीं खेलता था। शुरुआती दिनों में वह बेहतरीन ड्रिबलर था। उसका गेंद पर नियंत्रण अच्छा था। वह नई और पुरानी पीढ़ी का शानदार मिश्रण था।” अब यह युवा खिलाड़ी न केवल अपने पुराने कौशल को बनाए रखता है बल्कि खेल की नई आवश्यकताओं के अनुसार भी खुद को ढाल चुका है।
भविष्य की योजनाएं और चुनौतियां
पेरिस ओलंपिक के बाद, अभिषेक ने खुद को लगातार सुधारने की जिम्मेदारी ले ली है। वे निरंतर अभ्यास करते हैं और अपनी कमजोरियों पर काम करते हैं। मास्टरजी ने कहा, “अभिषेक खुद में सुधार करता रहना चाहता है और इसी कारण खुद की आलोचना भी करता है। वह केवल तब खुश होता है जब वह टीम की अपेक्षाओं को पूरा कर सके।”
समाज के लिए प्रेरणा
अभिषेक की कहानी न केवल खिलाड़ियों बल्कि आम आदमी के लिए भी एक प्रेरणा है। जिस तरह से उन्होंने एक बड़े हादसे के बाद खुद को संभाला और आगे बढ़े, वह एक उदाहरण है कि कठिनाइयों के बावजूद कैसे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ा जा सकता है। अभिषेक ने साबित कर दिया कि जब तक आपके अंदर जुनून और दृढ़ संकल्प है, तब तक कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती।
निष्कर्ष
अभिषेक की यह यात्रा हमें सिखाती है कि जीवन में चाहे कितनी भी मुसीबतें आएं, हमें अपने सपनों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। उनकी कहानी हमें यह भी बताती है कि कठिनाइयों का सामना करते हुए भी अगर हम अपने लक्ष्य की ओर अडिग रहते हैं, तो सफलता अवश्य मिलती है। पेरिस ओलंपिक में उनके निराशा के बावजूद, वे अपने प्रदर्शन को सुधारते हुए भारतीय हॉकी टीम के लिए एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बने रहे और आगे भी रहेंगे।