शिविर पर सवार एक खिलाड़ी

गोलपोस्ट पर बैठे एक शख्स। मैदान पर हाथ खड़े कर सम्मान करती हुई टीम इंडिया। स्टैंडिंग ओवेशन देते हुए पेरिस के स्टेडियम में मौजूद फैंस। टीवी स्क्रीन के आगे भावुक होती आंखें। यह सबकुछ गोलपोस्ट पर बैठे उस एक खिलाड़ी के लिए जो 18 साल से भारतीय हॉकी टीम की दीवार है। वह खिलाड़ी जिसने कुछ घंटे पहले यह वादा किया था कि वह हमेशा सपनों का रखवाला बनकर रहेगा। उसने यह वादा पूरा किया। उसने भारतीय हॉकी टीम को लगातार दूसरे ओलंपिक में मेडल जीतते हुए देखने का सपना टूटने नहीं दिया।

पीआर श्रीजेश का सुनहरा सफर

हालांकि अब गोलपोस्ट में पीआर श्रीजेश नहीं दिखेंगे। पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने के साथ ही इस खिलाड़ी ने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर को अलविदा कह दिया। श्रीजेश ने यह ऐलान इन खेलों से पहले ही कर दिया था। टीम ने यह तय किया कि वह अपने साथी को मेडल के साथ ही विदाई देंगे। बीते 18 सालों में भारतीय टीम जब-जब मुश्किल में पड़ी उसने अपनी दीवार पर भरोसा किया और वह दीवार टूटी नहीं। श्रीजेश ने भारत के लिए 335 मैच खेले। इन 335 मैचों में उन्होंने अपनी शरीर पर बुलेट की रफ्तार से आती गेंदे खाईं, कभी दाएं गिरे तो कभी मुंह के बल। कभी पूरे डिफेंस का मोर्चा अकेले संभाला। श्रीजेश के रहते हुए फैंस के साथ-साथ उनकी टीम को भी भरोसा रहता था कि गेंद के गोलपोस्ट लाइन के पार जाना आसान नहीं है। उन्होंने अनगिनत सेव किए। अनगिनत मौकों पर टीम को मुश्किल से निकाला। वह कभी वर्ल्ड कप नहीं जीत पाए लेकिन अब दो-दो ओलंपिक मेडल साथ लेकर जा रहे हैं।

पहला ओलंपिक अनुभव

श्रीजेश सबसे पहले साल 2012 में ओलंपिक खेलने उतरे थे। लंदन में वह बतौर गोलकीपर टीम की दूसरी पसंद थे। कप्तान भरत छेत्री प्रमुख गोलकीपर थे। श्रीजेश ने यहां ओलंपिक डेब्यू किया लेकिन भारतीय टीम 11वें स्थान पर रही। भारत के खिलाफ 22 गोल हुए थे। वह एक भी मैच नहीं जीती थी।

कप्तानी का दारोमदार

साल 2016 में पीआर श्रीजेश को टीम की कप्तानी दी गई थी। भारत ने यहां ग्रुप राउंड में दो मैच जीते और क्वार्टर फाइनल में पहुंचे। टीम को क्वार्टर फाइनल में हार मिली। श्रीजेश का ओलंपिक मेडल जीतने का इंतजार बढ़ता जा रहा था।

टोक्यो में जीत का जश्न

पांच साल के बाद भारतीय हॉकी टीम टोक्यो ओलंपिक में पहुंची। इस बार न तो श्रीजेश कप्तान थे न ही कोई वैकल्पिक खिलाड़ी। कोरोना के बीच वह कप्तान न होते हुए भी टीम के लीडर बने। टीम टोक्यो में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर लौटीं और श्रीजेश के साथ-साथ भारतीय फैंस का मेडल का इंतजार भी खत्म हुआ।

पेरिस में सुनहरी विदाई

पेरिस ओलंपिक में टीम श्रीजेश को गोल्डन विदाई देना चाहती थी। भारत ने ग्रुप राउंड में ऑस्ट्रेलिया को हराकर अपने गोल्डन तेवर दिखा भी दिए। इसके बाद क्वार्टर फाइनल में 10 खिलाड़ियों के साथ जब भारत को ग्रेट ब्रिटेन का सामना करना था तब एक बार फिर श्रीजेश पर सभी की निगाहें थीं। श्रीजेश ने निराश नहीं किया। 43 मिनट तक भारतीय गोल पोस्ट पर अंगद का पांव बनकर जम गए। इसके बाद पेनल्टी शूटआउट में भी ग्रेट ब्रिटेन के खिलाड़ियों की कोशिशों को नाकाम किया। भारत ने अपने इस कमाल के डिफेंस के दम पर मैच जीता। हालांकि सेमीफाइनल में जर्मनी ने भारत और श्रीजेश का गोल्ड मेडल का सपना तोड़ दिया लेकिन टीम ने हार नहीं मानी। टीम ब्रॉन्ज मेडल मैच में उतरी और यह तय किया की श्रीजेश की विदाई जीत के साथ हुई। फाइनल मैच में भी श्रीजेश ने कई सेव किए। वह इस जीत के हीरो रहे।

श्रीजेश का योगदान और प्रेरणा

पीआर श्रीजेश ने जिस तरह भारतीय हॉकी को ऊंचाईयों पर पहुंचाया है, वह काबिले तारीफ है। उनका समर्पण और मेहनत युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा बन गई है। उनके योगदान को भारतीय हॉकी इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। श्रीजेश ने न केवल खेल की प्रतिष्ठा को बढ़ाया, बल्कि उन्होंने अपनी दृढ़ता और निष्ठा के साथ एक उदाहरण स्थापित किया। उनके गोलपोस्ट में रहते हुए टीम इंडिया हमेशा सुरक्षित महसूस करती थी। वह सच्चे मायनों में एक लीजेंड हैं।

भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा

पीआर श्रीजेश के विदाई के साथ भारतीय हॉकी को एक बड़ा झटका लगा है, लेकिन उनके द्वारा छोडे गए मानकों और प्रेरणा के रथ को आगे बढ़ाने का काम नए खिलाड़ियों के कंधों पर रहेगा। भारतीय हॉकी के इस महान योद्धा को सलाम जिन्होंने हमारे सपनों को जीवित रखा और हमें गर्व करने का मौका दिया। उनकी खेल भावना और प्रतिबद्धता हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेगी।

By IPL Agent

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