दो भारतीय खिलाड़ियों का एक ही हाफ में होना
पेरिस ओलंपिक के बैडमिंटन पुरुष सिंगल्स वर्ग में भारत को एक बड़ा झटका पहले ही लग गया था। ड्रॉ के अनुसार, यह स्पष्ट हो गया था कि भारत के दो शीर्ष खिलाड़ी, लक्ष्य सेन और एचएस प्रणॉय, एक ही हाफ में भिड़ेंगे। इसका मतलब यह था कि क्वार्टर फाइनल में सिर्फ एक ही भारतीय खिलाड़ी का जगह बनाना निश्चित था। यह स्थिति निश्चित रूप से खिलाड़ियों के मनोबल पर असर डालने वाली थी, और इसने फैंस को भी चिंता में डाल दिया था।
प्रणॉय के संघर्ष की कहानी
भारत के अनुभवी खिलाड़ी एचएस प्रणॉय 31 जुलाई को ग्रुप राउंड के आखिरी मुकाबले में उतरे थे। इस मुकाबले में उन्होंने वियतनाम के लीड बुक प्लान को निर्णायक गेम में मात दी और क्वार्टर फाइनल में अपनी जगह बनाई। मगर इस जीत के बाद उन्हें महज 19 घंटे के अंदर ही अगले मैच के लिए कोर्ट पर फिर से उतरना पड़ा। गुरुवार को जब वे कोर्ट पर आए तो उनका शरीर थकान और दर्द से जूझता नजर आ रहा था।
लक्ष्य सेन की शानदार प्रदर्शन
दूसरी तरफ, युवा खिलाड़ी लक्ष्य सेन ने भी मैदान पर अपने खेल का शानदार प्रदर्शन किया। पूरे मैच के दौरान वे बेहद आत्मविश्वास से भरे नजर आए। उन्होंने प्रणॉय पर कोई आक्रमण नहीं होने दिया और जल्द ही पहला गेम 21-12 से और दूसरा गेम 21-6 से जीतकर मुकाबले को अपने नाम किया। भले ही प्रणॉय का प्रदर्शन उनकी सामान्य क्षमता से दूर था, लेकिन लक्ष्य सेन ने अपनी पूरी क्षमताओं से खेला।
प्रणॉय का स्वस्थ्य समस्या
प्रणॉय की हार के बाद सोशल मीडिया पर उनके प्रदर्शन को लेकर कई सवाल उठे। फैंस का मानना था कि इतने महत्वपूर्ण मैच में प्रणॉय ने अपनी पूरी कोशिश क्यों नहीं की। इस सवाल का जवाब भी जल्दी ही सामने आ गया। दरअसल, प्रणॉय इस महीने की शुरुआत में चिकनगुनिया बीमारी से जूझ रहे थे और उन्हें पांच दिन तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था। उनके शरीर ने इस बीमारी से पूरी तरह उबर नहीं पाया था, जिससे उनकी खेल क्षमता पर भी असर पड़ा।
प्रणॉय का अनुभव और संघर्ष
मैच के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए प्रणॉय बहुत भावुक हो गए। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ हफ्ते उनके लिए बहुत मुश्किल थे और वे अभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाए हैं। इतना कहने के बाद ही उनकी आंखें भर आईं। प्रणॉय भारतीय बैडमिंटन में एक बड़ा नाम हैं लेकिन लगातार प्रदर्शन न कर पाने के कारण वे उस स्तर की सफलता नहीं पा सके, जैसे कि अन्य युवा खिलाड़ी।
फिटनेस का संघर्ष
बिते एक साल में प्रणॉय ने अपनी फिटनेस पर काफी काम किया और पहली बार 32 साल की उम्र में ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने में सक्षम हुए। हालांकि, फिर भी फिटनेस की समस्या ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। इसके बावजूद प्रणॉय ने अद्वितीय जोश और जुनून के साथ खेला, और यही कारण है कि वे देश के युवाओं के लिए हीरो बने हुए हैं।
कठिन समय में खिलाड़ियों का संघर्ष
गुरुवार को मिली हार के बाद भी प्रणॉय ने अपने जज्बे को नहीं खोया। उन्होंने मीडिया से कहा, “मेरे लिए पिछले कुछ हफ्ते बहुत मुश्किल रहे, लेकिन मैं खुश हूं कि मैं यहां हूं। अगर मुझे चिकनगुनिया एक हफ्ते बाद हुआ होता, तो आज मैं यहां नहीं होता। मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात है कि मैं ऐसे मौके पर खेल रहा हूं और उम्मीद करता हूं कि मुझे आगे और भी मौके मिलेंगे।”
खिलाड़ियों और फैंस के लिए संदेश
प्रणॉय की कहानी से यह स्पष्ट हो गया है कि खेल में मानसिक और शारीरिक फिटनेस दोनों ही बेहद महत्वपूर्ण हैं। प्रणॉय ने अपने संघर्ष से एक संदेश दिया है कि मेहनत और द्रढ़ता के साथ हर कठिनाई का सामना किया जा सकता है। उनकी यह कहानी न केवल फैंस के लिए प्रेरणा है बल्कि उन खिलाड़ियों के लिए भी एक सीख है जो अपने करियर में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
इस प्रकार, प्रणॉय का यथार्थ संघर्ष और लक्ष्य सेन का शानदार खेल दोनों एक अद्वितीय धरोहर के रूप में भारतीय बैडमिंटन इतिहास में दर्ज हो गया है। दोनों खिलाड़ियों का संघर्ष और दृढ़ता भारतीय खेल जगत के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गया है।