प्रारंभिक जीवन और क्रीड़ा प्रबोधिनी योजना

स्वप्निल कुसाले का जीवन कोल्हापुर के कंबलवाड़ी गांव से शुरू हुआ। यहां के लोग जैविक खेती और शराब मुक्त जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं। गांव के अन्य बच्चों की तरह स्वप्निल भी भोगवती स्कूल में पढ़ने जाते थे। केवल 14 साल की उम्र में उन्हें महाराष्ट्र सरकार की क्रीड़ा प्रबोधिनी योजना के लिए चुना गया।

इस योजना के तहत, स्वप्निल को निशानेबाजी में प्रशिक्षण किया गया। उनके माता-पिता, सुरेश और अनिता कुसाले, स्वप्निल की शिक्षा और खेल में रुचि को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अनिता, गांव की सरपंच भी हैं, जो अक्सर स्थानीय मुद्दों को सुलझाने में व्यस्त रहती थीं।

निशानेबाजी में प्रारंभिक सफलताएँ

निशानेबाजी के चार साल बाद, 2015 में स्वप्निल ने अपने पहले बड़े टाइटल को हासिल किया। उन्होंने एशियाई चैंपियनशिप में 50 मीटर राइफल प्रोन स्पर्धा में खिताब जीता। इसी साल उन्होंने लंदन ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता गगन नारंग और चैन सिंह को हराकर राष्ट्रीय खिताब भी जीता।

उनकी रुचि 50 मीटर 3P स्पर्धा में भी बढ़ती गई, जो कि उन्हें जूनियर लेवल पर अंतिम दिनों में महसूस हुआ। इसी साल, स्वप्निल भारतीय रेलवे के टिकट कलेक्टर के तौर पर भी जुड़े।

महाकाल के भक्त और दौड़-कसरत

स्वप्निल कुसाले महाकाल के बड़े भक्त हैं। उन्होंने अपनी रीढ़ की हड्डी पर महामृत्युंजय मंत्र का टैटू बनवा रखा है, जो त्रिशूल की तरह दिखता है। यही नहीं, उन्होंने अपनी राइफल पर भारत लिखवा रखा है।

उनकी मां अनिता बताती हैं कि स्वप्निल अपनी सुबह की दौड़ कभी नहीं छोड़ते थे और छोटी उम्र से ही बहुत फिट थे। जब वे क्रीड़ा प्रबोधिनी योजना से जुड़े तो उन्हें खेलों में नाम कमाना था। प्रशिक्षकों ने जब उन्हें शूटिंग में लाने का फैसला किया, तो वे हमेशा न सिर्फ खुद को बेहतर करने का प्रयास करते थे, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित करते थे।

ओलंपिक में इतिहास रचना

स्वप्निल कुसाले ने पेरिस ओलंपिक में पुरुष 50 मीटर 3P फाइनल में कांस्य पदक जीतकर भारत का नाम रौशन किया। यह उनके और उनके परिवार के लिए बेहद गर्व का क्षण था। उनके पिता सुरेश बताते हैं कि स्वप्निल सरकारी आवासीय विद्यालयों में रहते थे और उन्हें अपने गांव लौटने का समय कम ही मिलता था। लेकिन जब भी वे गांव आते थे, उनके परिवार के साथ कुछ समय जरूर बिताते थे।

सुरेश का कहना है, “इस बार उन्हें ओलंपिक पदक के साथ घर आते देखना वास्तव में हम सभी के लिए एक विशेष क्षण होगा। हम उन्हें इस बार गांव में अधिक समय गुजारते देखना चाहेंगे।”

गांव का गौरव और आकांक्षाएं

स्वप्निल की मां अनिता विशेष रूप से गर्वित हैं क्योंकि उनके बेटे ने न सिर्फ खुद का, बल्कि पूरे गांव का नाम रौशन किया है। वे कहती हैं, “हमारा गांव जैविक खेती के अलावा नशामुक्ति के लिए भी मशहूर है। स्वप्निल ने अपने मेहनत और समर्पण से यह साबित कर दिया कि यदि इच्छा शक्ति हो तो असंभव कुछ भी नहीं है।”

भविष्य की योजनाएं

स्वप्निल कुसाले की नजर अब भविष्य की प्रतियोगिताओं पर है। उनका लक्ष्य अगली ओलंपिक स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक जीतना है। इसके साथ ही, वे इच्छुक हैं कि उनके गांव के युवा भी खेलों में हिस्सा लें और एक दिन देश के लिए पदक जीतें।

स्वप्निल कुसाले की कहानी प्रेरणादायक है और एक आदर्श साबित होती है कि यदि मेहनत और संकल्प हो, तो किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। उनके इस सफर को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि महाकाल का यह भक्त भारत के निशानेबाजी में नए आयाम स्थापित करेगा।

By IPL Agent

💲Daily Check-In Free Bonus💲 💵 Sign Up & Login everyday to get free cash!💵 👉 cricket1.in